हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा
पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम का नसब शरीफ़ वालिद माजिद हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु की तरफ से यह है - हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्दे मुनाफ़ बिन कुस्सा बिन कलाब बिन मुर्रह बिन कअब बिन लुवइ बिन गालिब बिन फेहर बिन मालिक बिन नज़र बिन किनाना बिन खुजैमा बिन मुदरिका बिन इल्यास बिन मुज़र बिन नज़ार बिन मअद्द बिन अदनान और वालिदा माजिदा हज़रते सैयदा बीबी अमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा की तरफ से पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम का शजरा-ए-नसब यह है - हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बिन आमिना बिन्ते वहब बिन अब्दे मुनाफ़ बिन जुहरा बिन किलाब बिन मुर्रह।
पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम का खानदान व नसब, नजाबतो-शराफत में तमाम दुनिया के खानदानों से अशरफ़ व आला है। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के मां-बाप दोनों का सिलसिला-ए-नसब 'फिहर बिन मालिक' से मिलता है। इसलिए पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम मां-बाप दोनों तरफ से कुरैशी हैं।
हज़रते सैयदा बीबी आमिना रयिल्लाहु तआला अन्हा कुरैश की अफजल तरीन खातून थीं। उस दौर में कोई दूसरी खातून आपकी सहीम नहीं थी। हज़रत आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा ने एक ऐसे घराने में आंख खोली जो सब घरानों में इज्जतदार शुमार होता था। हसब व नसब में उनकी बराबरी के दावे की हिम्मत तक नहीं थी। आप में नसब की शराफत, हसब की तरक्की दोनों चीजें शमिल थीं। हज़रत आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा के वालिद का नाम वहब अब्दे मुनाफ़ और वालिदा का नाम बर्राह था।
अवसाफे जमीला (अच्छी खूबियां): हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा निहायत पारसा (पाक), परहेजगार, तहारते नफ्स (रूह की पाकीजगी), शराफते नसब, इज्जत वाली, साहिबे ईमान खातून थीं। आप कुरैश की औरतों में हसब नसब और फजीलत में सबसे मुमताज (बुलंद) थीं।
निकाह : हज़रते सैयदना अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के वालिद माजिद हैं। यह हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के तमाम बेटों में सबसे ज्यादा बाप के लाडले और प्यारे थे। चूंकि उनकी पेशानी में नूरे मुहम्मदी अपनी पूरी शानो शौकत के साथ जलवागर था। इसलिए हुस्नो पैकर और जमाले सूरत व कमाले सीरत के आईनादार और इफ़्फत व पारसाई में यकता-ए-रोज़गार थे। कबीला-ए-कुरैश की तमाम हसीन औरतें उनके हुस्नो जमाल पर फ़रेफ़्ता और उनसे शादी की ख़्वास्तगार थीं। मगर हज़रत अब्दुल मुत्तलिब उनके लिए एक ऐसी औरत की तलाश में थे जो हुस्नो जमाल के साथ हस्बो नसब की शराफत और इफ़्फतो पारसाई में भी मुमताज़ हो। वहीं हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा के वालिद वहब बिन अब्दे मुनाफ़ ने जब हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु के कमालात देखे तो उन्हें आपसे बहुत मुहब्बत व अकीदत हो गई। घर आकर यह इरादा कर लिया कि मैं अपनी नूरे नज़र हज़रते आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा की शादी हज़रत अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु से ही करूंगा। अपनी इस दिली तमन्ना को अपने चंद दोस्तों के जरिए उन्होंने हज़रत सैयदना अब्दुल मुत्तलिब रदियल्लाहु तआला अन्हु तक पहुंचा दी। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अपने बेटे हज़रत अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु के लिए जैसी दुल्हन तलाश कर रहे थे, वह सारी खूबियां हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा में मौजूद थीं। इसलिए आपने इस रिश्ते को खुशी-खुशी मंजूर कर लिया।
चुनांचे चौबीस साल की उम्र में हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु का हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा से निकाह हो गया और नूरे मुहम्मदी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह से हज़रते आमिना के शिक्मे अतहर में जलवागर हुआ। और जब हमल शरीफ़ को दो महीने पूरे हो गए तो हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रत अब्दुल्लाह को खजूरे लेने के लिए मदीना शरीफ़ भेजा या तिजारत के लिए मुल्के शाम रवाना किया। वहां से वापस लौटते हुए मदीने में अपने वालिद के ननिहाल बनू अदी बिन नज्जार में एक माह बीमार रह कर पच्चीस साल की उम्र में वफात पा गए और वहीं दारे नाबगा में मदफ़ून हुए। यह ख़बर जब हज़रते आमिना तक पहुंची तो वह गम व सदमे से निढ़ाल हो गईं।
पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की यौमे विलादत : हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा किस कदर खुशनसीब खातून हैं कि आपको पैगंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की वालिदा माजिदा का शर्फ हासिल हुआ। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम हज़रते बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा की इकलौती औलाद हैं। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की तारीखे पैदाइश पर कौले मशहूर यही है कि वाकिआ-ए-अस्हाबे फ़ील से पचपन दिन के बाद 12 रबीउल मुताबिक 20 अप्रैल 571 ई. विलादते बा-सआदत की तारीख़ है। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम पाकीजा बदन, नाफ़ बुरीदा, ख़तना किए हुए, खुशबू में बसे हुए ब-हालते सज्दा, मक्का मुकर्रमा की मुकद्दस सर जम़ीन में अपने वालिदे माजिद के मकान के अंदर पैदा हुए। सबसे पहले पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने अबू लहब की लौंडी हज़रते सुवैबा रदियल्लाहु तआला अन्हा का दूध नोश फरमाया फिर अपनी वालिदा माजिदा हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा के दूध से सैराब होते रहे। फिर हज़रते हलीमा सादिया रदियल्लाहु तआला अन्हा आपको अपने साथ ले गईं और अपने कबीले में रखकर दूध पिलाती रहीं और उन्हीं के पास दूध पीने का ज़माना गुजरा। जब पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम हज़रते हलीमा रदियल्लाहु तआला अन्हा के घर से मक्का मुकर्रमा पहुंच गए और अपनी वालिदा मुहतरमा के पास रहने लगे तो हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु तआला अन्हा जो आपके वालिद माजिद की बांदी थीं आपकी खातिरदारी और खि़दमत गुज़ारी में दिन रात जी जान से मसरूफ़ रहने लगीं। हज़रते उम्मे ऐमन का नाम बरकत है। यह आपको आपके वालिद से मीरास में मिली थीं। यही आपको खाना खिलाती थीं।
हज़रते सैयदा बीबी आमिना का विसाल मुबारक : पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की जब उम्र शरीफ़ छह बरस की हो गई तो आपकी वालिदा माजिदा आपको साथ लेकर मदीना मुनव्वरा आपके दादा के ननिहाल बनू अदी बिन नज्जार में रिश्तेदारों की मुलाकात या अपने शौहर की कब्र की जियारत के लिए तशरीफ़ ले गईं। इस सफ़र में हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा और हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु तआला अन्हा साथ थीं। वहां से वापसी पर अबवा नामी गांव में हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा की वफात हो गई और वहीं मदफ़ून हुईं। वहीं आपकी मजारे मुबारक बनी। वालिदे माजिद का साया तो विलादत से पहले ही उठ चुका था। अब वालिदा माजिदा की आगोशे शफ़्क़त का भी खात्मा हो गया। लेकिन हज़रते बीबी आमिना का यह दुर्रे यतीम जिस आगोशे रहमत में परवरिश पा कर परवाना चढ़ने वाला है। वह इन सब जाहिरी असबाबे तरबियत से बेनियाज है। हज़रते सैयदा बीबी आमिना रदियल्लाहु तआला अन्हा की वफात के बाद हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु तआला अन्हा पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम को मक्का लाईं और आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के सुपुर्द किया और दादा ने पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की इंतेहाई शफ़कत व मुहब्बत के साथ परवरिश की और हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु तआला अन्हा पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की खिदमत करती रहीं। जब आपकी उम्र शरीफ़ आठ बरस की हो गई तो आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब का भी इंतकाल हो गया। दादा का इंतकाल हो जाने पर आपके चचा अबू तालिब ने आपको अपने अगोशे तरबियत में लिया।
सदका तुम पे हो दिल ओ जान आमिना
तुमने बख्शा हमको ईमान आमिना
जो मिला, जिसको मिला, तुमसे मिला
दीन ओ ईमान, इल्म ओ इरफान आमिना
कुल जहां की माएं हों तुम पर फिदा
तुम मुहम्म्द (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बनी मां आमिना
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